जज़्बा
गिरते – सँभलते ही सीखा था चलना
ना बदलेंगे गिर के सम्भलनेका जज़्बा!
बनते, बिगड़ते बनी है ये दुनिया
की बनने से पहले बिगड़ेगा क्या वोह?!|
गिरायेगा क्या वोह? पछाड़ेगा क्या वोह?
की गिर के पटक के बनें सख्त पथ्थर!
तराशा जो पथ्थर तो बनती है मूरत,
ना तोड़ें उसे तो तराशेगा क्या वोह?? |
मारेगा क्या वोह? मिटाएगा क्या वोह?
के मरनेसे मिटती नहीं है शहीदी !
शहीदों के खुनों से बनता है भारत
ना खौला अगर तो बहायेगा क्या वोह?|
हसते हँसाते रहें – ना-रहें हम
मगर तू ना करना जुदाई का एक ग़म;
मिलते बिछडते कटी जिंदगी है
कभी ना भूला, याद करने का जज़्बा!|
यह कुछ शब्द अपने वीर जवानों के नाम, जिनके सरहद पर डंटे रहने से हम सब चैन से सो सकते हैं|
हिंदी में लिखने का मेरा यह प्रथम प्रयास है, कुछ ग़लत लिखा गया है तो माफी चाहूंगा | आपकी समज और सहकार के लिए बहोत ही शुक्रिया|
ડિસેમ્બર 30, 2017 at 10:06 પી એમ(pm)
Nice one….
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ડિસેમ્બર 30, 2017 at 10:41 પી એમ(pm)
Thank you Vijay
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ડિસેમ્બર 30, 2017 at 11:08 પી એમ(pm)
You are welcome…..
Plz Follow my site too ……
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જાન્યુઆરી 10, 2018 at 7:39 એ એમ (am)
Khubsurat lekhan👌👌
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જાન્યુઆરી 10, 2018 at 8:49 એ એમ (am)
Dear Madhusudanji,
आपका बहूत बहूत शुक्रिया।
~ रुचिर
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